रात की ड्यूटी (Night Shift)

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रात की ड्यूटी (Night Shift) Horror Story: यह कहानी लक्षमबर्ग (Luxembourg) के एक हॉस्पिटल में काम करने वाली एक नर्स की है जिसे एक बीमार मरीज की देखभाल करते समय सफ़ेद कपडे पहने एक आत्मा नजर आती है। यह कहानी नर्स और मरीज के बीच में होने वाले निस्वार्थ सेवा को भी दर्शाती है पर एक डरावने तरीके में।

यह बात आज से दस साल पुरानी है, जब मैं एक ऐसे अस्पताल में नर्स की नौकरी करती थी जहाँ बूढ़े और लाचार लोग अपने आखिरी दिनों का इंतज़ार कर रहे होते थे। ज़्यादातर मरीज़ बिस्तर पर ही पड़े रहते थे, धीरे-धीरे अपनी मृत्यु की ओर बढ़ते हुए, जैसे नींद और बेहोशी के बीच कहीं अटके हों।

मैं उस रात की ड्यूटी पर थी, अपनी सबसे प्यारी सहकर्मी/दोस्त के साथ। हम दोनों साथ में काम करना पसंद करते थे, जैसे दो चुपचाप जागते पहरेदार किसी मरते हुए क़िले में।

सोचिए, पूरे अस्पताल में 120 मरीज़ और सिर्फ़ हम दो स्वस्थ इंसान। हाँ, उनमें से कुछ अब भी अपने काम खुद कर सकते थे, लेकिन फिर भी वो इमारत… वो रात… कुछ तो अजीब था।

रात के तीन बजे से सुबह साढ़े पाँच के बीच हमारा सबसे अहम चक्कर होता था—डायपर बदलना, दवाइयाँ देना, पानी पिलाना। उस रात दो वार्ड बचे थे। हम दूसरे वार्ड में घुसे ही थे कि एक अजीब-सी आवाज़ सुनाई दी।

एक औरत की आवाज़… तेज़ और साफ़, लेकिन उसमें कुछ रुकावट थी—जैसे पुरानी रेडियो फ़्रीक्वेंसी हो। मगर जो बोला जा रहा था, वो समझ नहीं आ रहा था।

मैंने अपनी साथी से कहा, “सुनो ज़रा… कुछ गड़बड़ लग रही है।”

उसने कान लगाया और बोली, “अजीब है… लगता है जैसे किसी ने टीवी या रेडियो ऑन कर दिया हो।”

मैंने धीमे से कहा, “पर, स्टेफ़नी… यहाँ कौन ऑन करेगा? ये मरीज़ तो हिल भी नहीं सकते… और ये आवाज़ किसी बंद कमरे से नहीं आ रही—ये तो बिलकुल पास से आ रही है… जैसे कोई हमारे पीछे खड़ा हो।”

उसने मुझे देखा—थोड़ा गंभीर, थोड़ा डरा हुआ चेहरा और बोली, “सही कह रही हो… लेकिन चलो, काम पूरा कर लें।”

हम आगे बढ़ते गए, कान वहीँ टिके रहे… और तभी, आवाज़ एकदम बंद हो गई।

एक पल के लिए मैं ठिठक गई। मन में ख्याल आया—शायद मैं थक चुकी हूँ… शायद ये सब बस मेरे दिमाग का खेल है…

हम अपने अगले मरीज़ के पास पहुँचे। उसकी हालत बेहद खराब थी….पूरा बिस्तर, उसके कपड़े, यहां तक कि उसका शरीर भी सब गीले मल से सना हुआ था। हमें पूरा बिस्तर साफ़ करना पड़ा, उसे नहलाना पड़ा, और नया पायजामा पहनाना पड़ा। यह सब करते-करते कई बार बाथरूम और बेड के बीच भी भागना पड़ा।

आख़िर में स्टेफ़नी ने कहा कि वो मरीज़ को नया शर्ट पहनाएगी, तो मैंने सारे गंदे कपड़े और चादरें बाहर ले जाकर हॉलबे में रखे हमारे सप्लाई ट्रॉली के पास जमा करनी शुरू कर दी। हमें नई चादरें, कंबल, स्किन क्रीम, तौलिए—बहुत कुछ चाहिए था, इसलिए दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया ताकि चीज़ें आसानी से लाई जा सकें।

मेरी पीठ स्टेफ़नी की तरफ़ थी, लेकिन उसकी आवाज़ अब भी सुनाई दे रही थी—वो मरीज़ से कुछ कह रही थी, उसे धीरे-धीरे सीधा कर रही थी। जैसे ही मैं बाहर निकली, एक गंदी चादर मेरे हाथ से छूटकर ज़मीन पर गिर पड़ी। मैं झुकी उसे उठाने के लिए… और उसी पल मेरी नज़र खुले दरवाज़े से होकर हॉलबे पर पड़ी।

जो मैंने देखा, उसे आज तक भूल नहीं पाई हूँ।

एक बूढ़ी, छोटी-सी काया वाली, सफेद नाइटी में लिपटी हुई, हॉलबे में बिना आवाज़ के जा रही थी। उसका शरीर ज़मीन से कुछ इंच ऊपर था—वो चल नहीं रही थी, बल्कि हवा में तैर रही थी… एकदम चुपचाप।

पहली सोच ये आई कि क्या स्टेफ़नी बाहर आ गई है? क्योंकि नर्सों की यूनिफॉर्म भी तो सफेद होती है। पर फिर दिमाग ने जवाब दिया, नहीं, अगर स्टेफ़नी बाहर आती, तो मैं देखती ना?

मैं वहीँ जम गई। मेरा शरीर हिल नहीं पा रहा था… जैसे समय रुक गया हो। सब कुछ बस कुछ सेकंड में हुआ।

तभी पीछे से स्टेफ़नी की आवाज़ आई, वो हँसते हुए, बिलकुल सामान्य लहज़े में “अरे, क्या चल रहा है? पूरी रात ये गंदी चादरें ही उठाए घूमने का प्लान है क्या?”

मैं उछल पड़ी। उसकी और मुड़ी और कांपती आवाज़ में बोली, “स्टेफ़… तुम तो बाहर थी! मैंने तुम्हें हॉलबे में चलते देखा…!”

उसने भौंहें चढ़ाईं और बोली, “नहीं रे, मैं तो मरीज़ को तैयार कर रही थी, याद है? तुझे क्या हो गया है? तेरा चेहरा तो बिलकुल सफेद हो गया है… सब ठीक है ना? मितली तो नहीं आ रही?”

मेरे हाथ से सब कुछ छूट गया…..चादरें, कपड़े, सब और मैं पागलों की तरह भागती हुई हॉलबे में निकल गई। वो औरत… उसका साया अब भी वहाँ था, दीवार की ओर बढ़ता हुआ। और फिर एक पल में, वो दीवार के आर-पार चली गई… जैसे कभी थी ही नहीं।

स्टेफ़नी पीछे-पीछे दौड़ कर आई। उसने मुझे वहीं खड़ा पाया। मैं काँपती हुई, पुरे शरीर पर रोंगटे खड़े हुवे, जैसे किसी बर्फ़ीली हवाओं वाले कमरे में खड़ी हूँ।

बाहर गर्मियों की तपिश थी, लेकिन उस हॉलबे में… कसम से, ऐसा लग रहा था जैसे कोई फ़्रीज खोल कर खड़ा हो।

स्टेफ़नी ने चौंक कर कहा, “हे भगवान! यहाँ इतनी ठंड अचानक क्यों हो गई?”

उसे वो औरत नहीं दिखी थी।

और फिर न जाने क्यों, शायद उस पल की कोई अजीब सी सच्चाई थी I बोल पड़ी, “हमें नीचे जाना होगा… मिसेज़ ज़ेड अब इस दुनिया में नहीं रहीं।”

वो हक्की-बक्की रह गई। “क्या? तुम कैसे कह सकती हो? अभी थोड़ी देर पहले ही तो देखा था, वो सो रही थीं।”

मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “स्टेफ़… मैंने उनकी आत्मा को देखा है। वो अभी-अभी इस हॉलबे से गुज़री है।”

स्टेफ़नी, अब भी उलझन में, मेरे साथ नीचे चल पड़ी। जब हम मिसेज़ ज़ेड के कमरे में पहुँचे, वहाँ अजीब सी शांति थी……शांतिपूर्ण।

और वो सचमुच जा चुकी थीं।

उनका शरीर अब भी गर्म था, जैसे कुछ ही पलों पहले अंतिम साँस ली हो।

हमने तुरंत मेडिकल स्टाफ को बुलाया ताकि उनकी मृत्यु की पुष्टि की जा सके। शिफ़्ट ख़त्म होते-होते हमने उन्हें अच्छे से धोया और एक सुंदर-सी ड्रेस पहनाई। मैं पूरी प्रक्रिया के दौरान एक शब्द नहीं बोली। लेकिन स्टेफ़नी… वो चुप नहीं बैठी। बार-बार मुझसे सवाल पूछती रही, जैसे उसे किसी भी तरह समझना था कि ये सब हुआ कैसे।

घर पहुँचते ही मैं अपने बिस्तर पर लेट गई। अब डर नहीं लग रहा था—बस हैरानी थी… गहरी, शांतिपूर्ण हैरानी। कुछ घंटे सोई… और सपना आया मिसेज़ ज़ेड का।

वो मेरी ओर आ रही थीं—जैसे जवान उम्र में हों, बिलकुल बढ़िया, मुस्कुराती हुईं। उनके चारों ओर हल्की सफेद रोशनी थी—शांत और सुकून भरी।

उन्होंने मुझे देखा और कहा,
“धन्यवाद, बेटा… इतने सालों तक मेरा ख़्याल रखने के लिए। अब मुझे जाना है।”

बहुत बाद में, जब मैंने उस रात की घटनाओं पर गहराई से सोचना शुरू किया… तब जाकर एक बात समझ में आई—

शुरुआत में जो अजीब सी ‘रेडियो’ जैसी आवाज़ सुनी थी ना…
वो असल में एक EVP थी (Electronic Voice Phenomenon) मिसेज़ ज़ेड की आत्मा की।

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Story Credits: Chow-Chow

So I hope Guys आपको यह Horror Story अच्छी लगी होगी।

पढ़ने के लिए धन्यवाद।


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